Friday, 5 January 2018

मां अपने बच्चों की सलामती के लिए रखती हैं सकट चौथ व्रत, जानें व्रत विधि, कथा


Sakat Chauth Fast Story – सकट  चौथ का व्रत माघ महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को रखा जाता हैं। इस व्रत को गणेश चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता हैं। इस दिन माताएं अपनी संतान की रक्षा और लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं। मान्यता हैं कि विघ्नहर्ता गणेश जी इस व्रत को करने वाली माताओं के संतानों के सभी दुःख दर्द हर लेते हैं और उन्हे सफलता के नये शिखर पर पहुंचाते हैं।


सकट चौथ का व्रत एवं मुहूर्त 2018
सकट चौथ या गणेश चतुर्थी का व्रत साल 2018 में 5 जनवरी, शुक्रवार के दिन मनाया जा रहा है।

सकट चौथ का व्रत एवं मुहूर्त 2019
सकट चौथ या गणेश चतुर्थी का व्रत साल 2019 में 24 जनवरी, गुरूवार के दिन मनाया जाएगा ।


महत्व –
सकट चौथ का उपवास श्री गणेश के पूजन और उनके ध्यान के लिए किया जाता हैं। इस दिन माताएं अपनी संतान की सफलता के लिए निर्जला व्रत रहती हैं। व्रती महिलाएं शाम को गणेश पूजन और चंद्रमा को अर्ध्य देने के बाद ही वह प्रसाद के साथ भोजन ग्रहण करती हैं। महाभारत काल में श्रीकृष्ण की सलाह पर पांडु पुत्र धर्मराज युधिष्ठिर ने सबसे पहले इस व्रत को रखा था। तबसे अब तक महिलाएं अपने पुत्र की कुशलता के लिए इस व्रत को रखती हैं।


किसी नगर में एक कुम्भार रहता था । एक बार उसने बर्तन बनाकर आंवा लगाया तो आंवा पक ही नहीं । हारकर वह राजा के पास जाकर प्रार्थना करने लगा । राजा ने राजपंडित को बुलाकर कारण पूछा तो राल्पन्दित ने कहा की हर बार आंवा लगते समय बच्चे की बलि देने से आंवा पक जाएगा । राजा का आदेश हो गया । बलि आरम्भ हुई । जिस परिवार की बारी होती वह परिवार अपने बच्चो में से एक बच्चा बलि के लिए भेज देता । इसी तरह कुछ दिनों बाद सकट के दिन एक बुडिया के लड़के की बारी आयी । बुडिया के लिए वाही जीवन का सहारा था । राजा आज्ञा कुछ नहीं देखती । दुखी बुडिया सोच रही थी की मेरा तो एक ही बीटा है ,वह भी सकट के दिन मुझसे जुदा हो जाएगा । बुडिया ने लड़के को सकट की सुपारी और दूब का बीड़ा देकर कहा “भगवान का नाम लेकर आंवा में बैठ जाना । सकट माता रक्षा करेंगी । ” बालक आंवा में बिठा दिया गया और बुडिया सकत माता के सामने बैठकर पूजा करने लगी । पहले तो आंवा पकने में कई दिन लग जाते थे,पर इस बार सकत माता की कृपा से एक ही रात में आंवा पाक गया था । सवेरे कुम्भार ने देखा तो हैरान रह गया । आंवा पाक गया था । बुडिया का बेटा एवं अन्य बालक भी जीवित एंव सुरक्षित थे । नगर वासियों ने सकत की महिमा स्वीकार की तथा लड़के को भी धन्य माना । सकत माता की कृपा से नगर के अन्य बालक भी जी उठे ।

सकट चतुर्थी या गणेश चतुर्थी व्रत विधि –

सकट चतुर्थी के दिन सुबह स्नान आदि से निवृत होकर साफ-सुथरे लाल रंक के वस्त्र धार करें । इसके बाद पूजन स्थान पर चौक डालकर भगवान गणेश जी को आसन पर विराजमान करायें। कलश पर दीपक जलाकर रख दें। लकड़ी का पटा लें उस पर तिल से चार सकट बनायें। गणेश पूजन के दौरान धूप-दीप आदि से श्रीगणेश जी की आराधना करें एवं तिल से बनी वस्तुओं, तिल गुड़ के लड्डू तथा मोदक का भोग लगाएं। यह पूजा शाम के समय की जाती हैं उस दिन गणेश चतुर्थी की कथा पढ़े और सभी को सुनाएं।  इसके पश्चात गणेश जी की आरती करें-



भगवान श्रीगणेशजी की आरती

जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा ॥ जय…॥

एकदंत, दयावंत, चारभुजा धारी।
माथे सिंदूर सोहे मूसे की सवारी ॥ जय…॥

अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया।
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ॥ जय…॥

पान चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा।
लडुअन का भोग लगे, संत करे सेवा ॥ जय…॥

दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी।
कामना को पूर्ण करो जाऊं बलिहारी ॥ जय…॥


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