कालचक्र
पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु के नाभि कमल से उत्पन ब्रम्हा की आयु १०० दिव्य वर्ष मानी गयी है. पितामह ब्रम्हा के प्रथम ५० वर्षों को पूर्वार्ध एवं अगले ५० वर्षों को उत्तरार्ध कहते हैं ।
सतयुग, त्रेता, द्वापर एवं कलियुग को मिलकर एक महायुग कहते हैं. ऐसे १००० महायुगों का ब्रम्हा का एक दिन होता है । इसी प्रकार १००० महायुगों का ब्रम्हा की एक रात्रि होती है । अर्थात परमपिता ब्रम्हा का एक पूरा दिन २००० महायुगों का होता है।
ब्रम्हा के १००० दिनों का भगवान विष्णु की एक घटी होती है. भगवान विष्णु की १२००००० (बारह लाख) घाटियों की भगवान शिव की आधी कला होती है । महादेव की १००००००००० (एक अरब) अर्ध्कला व्यतीत होने पर १ ब्रम्हाक्ष होता है ।
अभी ब्रम्हा के उत्तरार्ध का पहला वर्ष चल रहा है (ब्रम्हा का ५१ वा वर्ष) ।
ब्रम्हा के एक दिन में १४ मनु शाषण करते हैं :-
- स्वयंभू
- स्वरोचिष
- उत्तम
- तामस
- रैवत
- चाक्षुष
- वैवस्वत
- सावर्णि
- दक्ष सावर्णि
- ब्रम्हा सावर्णि
- धर्म सावर्णि
- रूद्र सावर्णि
- देव सावर्णि
- इन्द्र सावर्णि
इस प्रकार ब्रम्हा के द्वितीय परार्ध (५१ वे) वर्ष के प्रथम दिन के छः मनु व्यतीत हो गए है और सातवे वैवस्वत मनु का अठाईसवा (२८) युग चल रहा है । इकहत्तर (७१) महायुगों का एक मनु होता है । १४ मनुओं का १ कल्प कहा जाता है जो की ब्रम्हा का एक दिन होता है । आदि में ब्रम्हा कल्प और अंत में पद्मा कल्प होता है । इस प्रकार कुल ३२ कल्प होते हैं. ब्रम्हा के परार्ध में रथन्तर तथा उत्तरार्ध में श्वेतवराह कल्प होता है । इस समय श्वेतवराह कल्प चल रहा है. इस प्रकार ब्रम्हा के १ दिन (कल्प) ४०००३२००००००० (चार लाख बतीस "करोड़") मानव वर्ष के बराबर है जिसमे १४ मवंतर होते है ।
चार युगों का एक महायुग होता है :-
"सतयुग"
सतयुग का काल १७२८००० (सत्रह लाख अठाईस हजार) वर्षों का होता है । इस युग में चार अमानवीय अवतार हुए । मत्स्यावतार, कुर्मावतार, वराहावतार एवं नरिसिंघवातर. सतयुग में पाप ० भाग तथा पुण्य २० भाग था । मनुष्यों की आयु १००००० वर्ष, उचाई २१ हाथ, पात्र स्वर्णमय, द्रव्य रत्नमय तथा ब्रम्हांडगत प्राण था । पुष्कर तीर्थ, स्त्रियाँ पद्मिनी तथा पतिव्रता थी. सूर्यग्रहण ३२००० तथा चंद्रग्रहण ५००० बार होते थे । सारे वर्ण अपने धर्म में लीन रहते थे । ब्राम्हण ४ वेद पढने वाले थे ।
"त्रेतायुग"
त्रेतायुग का काल १२९६००० (बारह लाख छियान्व्वे हजार) वर्षों का होता है । इस युग में तीन मानवीय अवतार हुए. वामन, परशुराम एवं राम, त्रेता में पाप ५ भाग एवं पुण्य १५ भाग होता था. मनुष्यों की आयु १०००० वर्ष, उचाई १४ हाथ, पात्र चांदी के, द्रव्य स्वर्ण तथा अस्थिगत प्राण था । नैमिषारण्य तीर्थ, स्त्रियाँ पतिव्रता होती थी । सूर्यग्रहण ३२०० तथा चंद्रग्रहण ५०० बार होते थे. सारे वर्ण अपने अपने कार्य में रत थे. ब्राम्हण ३ वेद पढने वाले थे ।
"द्वापर युग"
द्वापर युग का काल ८६४००० (आठ लाख चौसठ हजार) वर्षों का होता है । इस युग में २ मानवीय अवतार हुए । कृष्ण एवं बुद्ध, इस युग में पाप १० भाग एवं पुण्य १० भाग का होता था. मनुष्यों की आयु १००० वर्ष, उचाई ७ हाथ, पात्र ताम्र, द्रव्य चांदी तथा त्वचागत प्राण था, स्त्रियाँ शंखिनी होती थी. सूर्यग्रहण ३२० तथा चंद्रग्रहण ५० हुए । वर्ण व्यवस्था दूषित थी तथा ब्राम्हण २ वेद पढने वाले थे ।
"कलियुग"
कलियुग का काल ४३२००० (चार लाख ३२ हजार) वर्षों का होता है । इस युग में एक अवतार संभल देश, गोड़ ब्राम्हण विष्णु यश के घर कल्कि नाम से होगा । इस युग में पाप १५ भाग एवं पुण्य ५ भाग होगा. मनुष्यों की आयु १०० वर्ष, उचाई ३.५ हाथ, पात्र मिटटी, द्रव्य ताम्र, मुद्रा लौह, गंगा तीर्थ तथा अन्नमय प्राण होगा । कलियुग के अंत में गंगा पृथ्वी से लीन हो जाएगी तथा भगवान विष्णु धरती का त्याग कर देंगे। सभी वर्ण अपने कर्म से रहित होंगे तथा ब्राम्हण केवल एक वेद पढने वाले होंगे अर्थात ज्ञान का लोप हो जाएगा।
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